शीर्षक पढ़कर आपको अजीब लगा होगा क्योंकि हम तो यही मानते हैं कि एक अमीर व्यक्ति दुखी हो ही नहीं सकता. हमारी सोच में सबसे मौलिक भूल यही है कि पैसे से ही सुख आता है. यह एक ग़रीब व्यक्ति की सोच है. उसका तर्क है: चूँकि पैसा न होने के कारण वह अच्छा भोजन, सुंदर घर, सुख सुविधाएँ नहीं जोड़ पा रहा है, और दुखी है; इसीलिए, इसके उल्टे, जिसके पास पैसा है, वह सुखी होना ही चाहिए.
सुख का संबंध भौतिक सुविधाओं से उतना नहीं है जितना मानसिक अवस्था से, यानि सुख एक भौतिक वस्तु न होकर चित्त की दशा है. यदि आपका मन शांत है, और आपके पास जो है उससे संतुष्ट हैं, तो आप सुखी हैं.
अब थोड़ा अंबानी परिवार के जीवन का अध्ययन करें इस पूरी बात को समझने के लिए. आज से कुछ साल पहले मुकेश अंबानी भारत ही नहीं बल्कि पूरे एशिया के सबसे अमीर आदमी थे. और उनकी श्रीमती, नीता अंबानी, आईपीएल की सबसे सफल टीम, मुम्बई इंडियंस, की मालकिन. मुकेश के पास उस समय खरबों रुपए थे. फिर भी उनकी इच्छा विश्व में नंबर एक बनने की ज़रूर थी. लेकिन पिछले 2 सालों के अंदर गौतम अडानी ने उन्हें पछाड़ दिया. अब, जो विश्व में नंबर एक बनने की सोच रहा हो, वह एशिया में भी पहला न बचा, तो उसे चैन कैसे पड़ेगा?
यही हाल मुंबई इंडियंस का हुआ. इस बार के आईपीएल में गर्त में ही चली गई. साथ ही, गर्त में चली गई नीता अंबानी की शान. एक भी मैच नहीं जीता. (मैं आईपीएल बिल्कुल नहीं देखता हूँ. इतना समय मेरे पास है नहीं बर्बाद करने के लिए. कभी कोई समाचार पर नज़र पड़ जाती है, तो कुछ अर्थ स्वयं एवं दूसरों के जीवन के लिए निकाल लेता हूँ.)
आपको लगता है कि, "फिर क्या हुआ यदि देश के नंबर दो अमीर हैं? इतना पैसा है तो. फिर क्या हुआ यदि इस बार मुंबई इंडियंस नहीं जीती? हर बार तो जीती थी." ऐसा आपको लगता है, मुकेश और नीता को नहीं. उनके नाम पर जो धब्बा लगा है, उनके आत्मसम्मान को जो चोट पहुँची है, उसका अंदाज़ा हम और आप नहीं लगा सकते.
इन अमीरों का सुख भौतिक सुख सुविधाओं में बिल्कुल नहीं होता, क्योंकि वे सब इनके पास असीमित मात्रा में होती हैं. इनका सुख होता है उपलब्धियों में; ऐसी चीज़ों में जिससे इनके अहम को पुष्टि मिले. सर्वोत्कृष्ट, सर्वोत्तम, सबसे ऊपर, सबसे आगे, सबसे प्रसिद्ध होने में इनका सुख है. यदि इस महत्वकांक्षा के सामने कोई चुनौती खड़ी होती है, तो वे इसे सहन नहीं कर पाते, और अंदर ही अंदर एक घुटन, एक कुंठा, एक डर में जीने लगते हैं; मानो सरेआम किसी ने इनकी बेइज़्ज़ती कर दी हो.
इस स्थिति में इनके सामने कितने ही स्वादिष्ट भोज्य पदार्थ हों, कितने ही मखमली बिस्तर, नौकर-चाकर, ऐश-औ-आराम हों, लेकिन तुच्छ अहम के कारण इनका जीवन नर्क बना होता है. ऊपर तो सब कुछ अच्छा दिख रहा होता है, लेकिन मन प्रताड़ित कर रहा होता है. इसे समझने के लिए आपको किसी अंबानी से मिलने की ज़रूरत नहीं है. थोड़ा अपने अंदर झाँकें. कई बार आपके साथ भी ऐसा ही हुआ होगा कि सारी सुख सुविधाएँ के बीच भी किसी घटना को लेकर आप इतने परेशान रहे होंगे कि भूख, प्यास, नींद सब मिट गई होगी.
इस नर्कपूर्ण ज़िंदगी से बचने का एकमात्र उपाय यह है कि अपने लिए सुख की परिभाषा स्वयं रचें. देखें कि आपको सुख कहाँ मिलता है. उसके लिए समय निकालें. पैसा कमाने में उतना ही समय दें, जितना ज़रूरी है. बाक़ी समय में कुछ साहित्य पढ़ें, कोई गीत रचें, प्रकृति से मेलजोल बढ़ाएँ, नृत्य करें, चित्रकारी करें. कुछ ऐसा करें जिससे आपको सुख मिलता हो. दूसरों की प्रशंसा, सम्मान पाने के लिए, उनका ध्यान आकर्षित करने के लिए, उनके likes, comments बटोरने के लिए कुछ भी न करें. दूसरों को हराने में, उनसे बेहतर बनने में अपना समय बर्बाद न करें. हाँ, जो अच्छा लगता है, दूसरों के साथ साझा कर सकते हैं. उन्हें अच्छा लगे न लगे, इस पर ध्यान न दें.
यदि आप अपने सुख को स्वयं खोज पाए, तो पाएँगे कि आपके पास पहले से ही बहुत कुछ मौजूद है, आपको कोई अंबानी, अडानी बनने की ज़रूरत नहीं है.